
बांग्लादेश की सर्वोच्च अदालत ने जमात-ए-इस्लामी के वरिष्ठ नेता अज़हर इस्लाम को युद्ध अपराध के मामले में बरी कर दिया है। अदालत ने उनकी मौत की सज़ा को पलटते हुए तत्काल रिहाई का आदेश सुनाया।
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इस फैसले के साथ ही एक दशक पुराना विवादास्पद मामला अब नई बहस को जन्म दे रहा है।
क्या था मामला?
1971 के बांग्लादेश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान अज़हर इस्लाम पर मानवता के विरुद्ध अपराध जैसे गंभीर आरोप लगे थे।
30 दिसंबर 2014 को अंतरराष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण ने उन्हें मौत की सजा सुनाई थी।
बाद में, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट की अपीलीय पीठ में अपील की थी। 2019 में पीठ ने सजा बरकरार रखी थी। लेकिन 2020 में दायर पुनर्विचार याचिका पर सुनवाई करते हुए अब कोर्ट ने फैसला पलट दिया।
7 सदस्यीय पीठ का फैसला
इस अहम फैसले की सुनवाई बांग्लादेश के मुख्य न्यायाधीश डॉ. सैयद रिफ़त अहमद की अध्यक्षता में 7 सदस्यीय पीठ ने की।
पीठ ने कहा कि यदि अज़हर इस्लाम के खिलाफ कोई अन्य मामला नहीं है, तो उन्हें तुरंत रिहा किया जाना चाहिए।
जमात-ए-इस्लामी की प्रतिक्रिया: ‘यह न्याय की जीत है’
फैसले के बाद, जमात-ए-इस्लामी बांग्लादेश के नेता शफ़ीकुर रहमान ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इसे “न्याय की जीत” करार दिया।
“हम बदला नहीं चाहते थे, बल्कि न्याय चाहते थे। यह फैसला साबित करता है कि सच्चाई को दबाया नहीं जा सकता।” — शफ़ीकुर रहमान
क्या यह फैसला नया राजनीतिक संकेत है?
इस फैसले के बाद बांग्लादेश में राजनीतिक हलकों में चर्चा तेज हो गई है। यह निर्णय उस समय आया है जब देश में राजनीतिक अस्थिरता और विपक्षी दलों पर कार्रवाई को लेकर अंतरराष्ट्रीय आलोचना हो रही है।
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह निर्णय आने वाले समय में जमात-ए-इस्लामी की राजनीतिक पुनर्स्थापना का मार्ग खोल सकता है।
न्याय, राजनीति और इतिहास की टकराहट
अज़हर इस्लाम की रिहाई से न सिर्फ कानूनी और राजनीतिक समीकरण बदले हैं, बल्कि यह बांग्लादेश के इतिहास और 1971 के युद्ध अपराधों की न्यायिक व्याख्या पर भी असर डाल सकता है।